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आखिरी खत

आखिरी खत (प्रतियोगिता के लिए)


आज भी याद है वो आम की अमराई, तुम्हारा पत्थर मारकर आम तोड़ने की कोशिश करना।
कभी एक दो आम टूट जाते तो तुम उसे मेरे लिए संभालकर रख लेते और जब मैं मिलती तो कितने प्यार से उन्हें देते हुए कहते-"ले बिंदिया आज मैंने दो आम तोड़े"। मैं भी बावरी आम पाकर निहाल हो जाती और एक बार भी नहीं कहती कि एक आम तुम भी खा लो। मैं आम खाती और तुम मुझे आम खाते देख कर यूँ खुश होते जैसे वो तुम्हारे ही पेट में जा रहा है।
वो आम की अमराई वो नदी का किनारा, गाँव की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडियों पर उछलते चलते कब जवानी की दहलीज़ पर पंहुँच गई पता ही न चला। तुम पढ़ने के लिए शहर चले गए।
तुम अपने पिताजी और छोटे भाई श्रेय के साथ स्टेशन जा रहे थे और मैं गाँव की छोटी सी पगडंडी पर खड़े होकर दूर से तुम्हें देख रही थी। तुम चले गए और मैंने हाथ में उस खत को कस कर दबा लिया था जो तुमने मुझे एक दिन पहले सबसे नज़रें बचाकर दिया था।।
आज तुम मेरे साथ नहीं हो लेकिन तुम्हारी यादें कभी मुझसे अलग नहीं होती हैं। मुझे अपनी जिंदगी से कोई शिकायत भी नहीं है। जब कभी यादों का  सैलाब  मष्तिष्क में उमड़ता है तुम्हारा खत निकाल कर पढ़ लेती हूँ और महसूस कर लेती हूँ तुम्हें ,तुम्हारे चिर स्पंदन को।

स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'


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3 Comments

Gunjan Kamal

28-Feb-2022 01:00 PM

वाह आदरणीया बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌🙏🏻

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Abhinav ji

28-Feb-2022 08:53 AM

Very nice

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Mukesh Duhan

28-Feb-2022 12:10 AM

Nice ji

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